Mahavir prasad biography in hindi
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय / Biography of Acharya Mahavir Prasad Dwivedi in Hindi- इस पोस्ट में आपको आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के जीवन परिचय, साहित्यक परिचय एवं उनकी भाषा शैली के बारे में बताया गया है।
प्रश्न– आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन-परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
Mahaveer Prasad Dwivedi |
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय
जीवन-परिचय- हिन्दी साहित्य के अमर कलाकार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई० (सं० 1921 वि०) में जिला रायबरेली में दौलतपुर नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता पं०
रामसहाय द्विवेदी सेना में नौकरी करते थे। आर्थिक दशा अत्यन्त दयनीय थी। इस कारण पढ़ने-लिखने की उचित व्यवस्था नहीं हो सकी। पहले घर पर ही संस्कृत पढ़ते रहे, बाद में रायबरेली, फतेहपुर तथा उन्नाव के स्कूलों में पढ़े, परन्तु निर्धनता ने पढ़ाई छोड़ने के लिए विवश कर दिया।
द्विवेदी जी का व्यक्तित्व और कृतित्व, दोनों ही इतने प्रभावपूर्ण थे कि उस युग के सभी साहित्यकारों पर उनका प्रभाव था। वे युग-प्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए। हिन्दी साहित्य में वह युग (द्विवेदी युग) नाम से प्रसिद्ध हुआ। सन् 1938 ई० (पौष कृष्णा 30 सं० 1995 वि०) में यह महान् साहित्यकार जगत् को शोकमग्न छोड़कर परलोक सिधार गया।
स्मरणीय संकेत
जन्म- | सन् 1864 ई० |
जन्म-स्थान- | दौलतपुर (रायबरेली) |
पिता- | पं० रामसहाय द्विवेदी |
भाषा- | गद्य पद्य दोनों में खड़ी बोली की स्थापना। भाषा सरल, प्रचलित, व्याकरणसम्मत, अरबी-फारसी के बोलचाल के शब्दों का प्रयोग। |
शैली- | (i) परिचयात्मक, (ii) आलोचनात्मक, (iii) गवेषणात्मक, (iv) भावात्मक, तथा (v) व्यंग्यात्मक |
रचनाएँ- | मौलिक तथा अनूदित, दोनों प्रकार की रचनाएँ। |
अन्य बातें- | मैट्रिक तक शिक्षा, रेलवे की नौकरी, 'सरस्वती' का सम्पादन। |
मृत्यु- | सन् 1938 ई० |
महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएं
रचनाएँ- द्विवेदी जी की मुख्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(क) मौलिक रचनाएँ-अद्भुत-आलाप, रसज्ञ रंजन-साहित्य-सीकर, विचित्र-चित्रण, कालिदास की निरंकुशता, हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, साहित्य सन्दर्भ आदि।
(ख) अनूदित रचनाएँ- रघुवंश, हिन्दी महाभारत, कुमारसम्भव, बेकन विचारमाला, किरातार्जुनीय शिक्षा एवं स्वाधीनता, वेणी संहार तथा गंगा लहरी आदि आपकी प्रसिद्ध अनूदित रचनायें हैं।
प्रश्न– आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का साहित्यिकपरिचयदीजिए।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय
उत्तर- युग प्रवर्तक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी गद्य एवं पद्य दोनों का सन्तुलित विकास किया। भारतेन्दु जी द्वारा गद्य का जो पौधा लगाया गया था, द्विवेदी जी ने उसे अपने प्रभाव से पुष्ट ही नहीं किया बल्कि आलोचना की कैंची से उसे छाँट-तराशकर सुन्दर और संस्कृत रूप भी दिया।
भाषा का परिमार्जन-
साहित्य का विकास-
प्रश्न– महावीरप्रसाद द्विवेदी की भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।
महावीर प्रसाद की भाषा एवं शैली
द्विवेदी जी की भाषा-द्विवेदी जी ने सरल प्रचलित खड़ी बोली में साहित्य रचना की है। संस्कृत, अरबी, फांरसी के आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करने में उन्होंने संकोच नहीं किया। उनकी वाक्य रचना सर्वथा हिन्दी के व्याकरण तथा प्रकृति के अनुकूल है। उर्दू की कलाबाजियों तथा संस्कृत के लम्बे लम्बे समासों- दोनों से ही आपकी भाषा मुक्त है।
गद्य शैली- द्विवेदी जी महान् शैली निर्माता थे। उनकी शैली में उनका व्यक्तित्व झलकता है। द्विवेदी जी के विषय में जगन्नाथ शर्मा का निम्नलिखित कथन ध्यान देने योग्य है-
"साधारणतया विषय के अनुसार भाव व्यंजना में दुरूहता आ ही जाती है परन्तु द्विवेदी जी की लेखन कुशलता एवं भावों का स्पष्टीकरण एकदम स्वच्छ तथा बोधगम्य होने के कारण सभी कुछ सुलझी हुई लड़ियों की भांति पृथक् दिखाई पड़ता है।"
द्विवेदी जी ने मुख्यतया तीन प्रकार के लेख लिखे हैं-(1) परिचयात्मक, (2) आलोचनात्मक, तथा (3) गवेषणात्मक।
विषय के अनुसार इनकी शैली के भी तीन मुख्य रूप हैं–
1.
परिचयात्मक-शैली– द्विवेदी जी ने शिक्षा और समाजशास्त्र आदि विषयों पर अनेक निबन्धों की रचना की है। इन निबन्धों में परिचयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। इस शैली में भाषा सरल, स्वाभाविक तथा वाक्य छोटे-छोटे हैं। यह द्विवेदी जी की सरलतम शैली है।
2.
आलोचनात्मक-शैली– द्विवेदी जी ने मनमाने ढंग पर लिखने वाले कवि-लेखकों तथा उनकी कृतियों की कटु आलोचना की है। उनके आलोचनात्मक निबन्धों की भाषा गम्भीर और संयत है तथा शैली ओजपूर्ण है। यह शैली अति सरल, सुगम और व्यावहारिक है। निम्नलिखित उदाहरण देखिए-
'संस्कृत जानना तो दूर की बात है, हमलोग अपनी मातृभाषा हिन्दी भी तो बहुधा नहीं जानते और जो लोग जानते भी हैं, उन्हें हिन्दी लिखने में शर्म आती है। इन मातृभाषा द्रोहियों का ईश्वरकल्याण करे।"
3.
गवेषणात्मक शैली
“ज्ञानराशि के संचित कोष का ही नाम साहित्य है। सबतरह के भावों को प्रकट करने की योग्यता रखने वाली और निर्दोष होने पर भी यदि कोई भाषा अपना निज का साहित्य नहीं रखती है तो वह रूपवती भिखारिन के समान कदापि आदरणीय नहीं हो सकती।”
"अच्छा, हंस रहते कहाँ हैं और खाते क्या हैं?
हंस बहुत करके इसी देश में पाये जाते हैं। उनका सबसे प्रियस्थानमानसरोवर है...... यदि हंस दूध पीते हैं तो उनको मिलता कहाँ है?
मानसरोवर में उन्होंने गायें या भैंसे तो पाल नहीं रखीं और न हिन्दुस्तान के किसी तालाब या नदी में उनके दूध पीने की सम्भावना है।"
संक्षेप में हम कह सकते है कि द्विवेदी जी एक महान शैलीकार थे। उनकी शैली में उनका व्यक्तित्व झलकता है। गद्य की शैली तथा भाषा का परिमार्जन कर उन्होंने एक युग-निर्माता का कार्य किया था।